पोते को नंबर एक खिलाड़ी बनाने के लिए 40 किलोमीटर बस यात्रा करती हैं 70 वर्षीय दादी

May 17, 2017

Yogems badminton championship

Reference: http://www.khelratna.org/70-years-old-grand-mother-doing-40-km-journy-for-make-grandson-no-1-player/

पोते का दादी और दादी का पोते से प्यार को शायद ही परिभाषित किया जा सकता है, कहानियां सुना के रोते बच्चे को आँचल में समेट परीलोक में ले जाना हो या पुचकारते हुए सने भोजन को हाथ से खिलाना. यह दादी नानी और माँ ही कर सकती है, लेकिन गौतमबुद्ध नगर के दुर्रई गांव के 11 वर्षीय बैडमिंटन खिलाड़ी नीर नेहवाल की 70 वर्षीय दादी कमला देवी अपने पोते के प्रति त्याग का एक अनोखा मिशाल पेश करती हैं. पोते को देश का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनाने के लिए प्रतिदिन बस में धक्के खाते 40 किलोमीटर की यात्रा कर दिल्ली प्रशिक्षण दिलाने ले जाती हैं. कई बार उनकी तबियत भी ख़राब हुए है, लेकिन 2 साल से अधिक समय से वह पोते की अंगुलियां पकड़ उसे आगे की राह दिखा रही हैं. वह अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर भी हो रही हैं.

नीर नेहवाल अंडर 13 में गौतमबुद्ध नगर का चैंपियन है. उत्तर प्रदेश में वह इस वर्ग के चौथे नंबर का खिलाड़ी भी बन गया है.15 मई को नोएडा स्टेडियम में ख़त्म हुए गौतमबुद्ध नगर और ग़ाज़ियाबाद बैडमिंटन चैंपियनशिप में इस खिलाड़ी ने चार खिताब अपने नाम किये.
अब कमला देवी का सपना नीर को देश का नंबर एक खिलाड़ी बनते देखना है. नीर की मेहनत को देखते हुए यह मुकाम जल्द मिलने की उम्मीद है. सुबह 6 बजे से नीर और दादी का सफर शुरू होता है और शाम 7 बजे ख़त्म होता है. नीर स्थानीय स्कूल में पढता है जहां से प्रशिक्षण के लिए छूट मिली हुए है. नीर के पिता जितेंद्र खेती और दूध बेचने का काम करते हैं. लिहाज़ा समय के अभाव के कारन नीर को प्रशिक्षण दिलाने का जिम्मा कमला देवी ने उठा रखा है. दोनों को इस सफर को पूरा करने के लिए दो बसें बदलनी पड़ती है.
‘नीर अच्छा खेलता है. यह देश का नंबर एक खिलाड़ी जरूर बनेगा. देश का नाम भी रोशन करेगा. इसके लिए मैं 40 क्या 400 किलोमीटर जा सकती हूँ. जब तक जान रहेगी पोते को आगे का रास्ता दिखती रहूंगी.’

बदमाशों ने कमला देवी के कुंडल तक छीन लिए
दिल्ली के अक्षरधाम से प्रशिक्षण दिलाने के बाद घर लौटते समय बदमाशों ने कमला देवी के कानों के कुंडल छीन लिए. इसी क्रम में एक बार नीर के अपहरण करने का प्रयास भी हुआ. लेकिन दादी अपने और पोते के सपने को पूरा करने के लिए अडिग हैं. नीर को तैयार कर सुबह घर से बस स्टैंड और प्रशिक्षण स्थल तक पहुंचना इनके लिए किसी मिशन से काम नहीं.

मैच के दौरान प्रशिक्षक जैसा व्यवहार
भले ही दादी ने जीवन में कभी रैकेट हाथ में न पकड़ा हो, लेकिन नीर के मैच के दौरान उनका व्यवहार कोच जैसा होता है. प्रत्येक गलती पर नीर को सलाह देना और अंक प्राप्त करने पर शाबाशी देना नहीं भूलतीं. जीत के आने के बाद अपनी अपनी पल्लू से उसके चेहरे के पसीने को साफ़ कर उसे रहत देतीं हैं.

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